बात सन 1939 की है । सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में पट्टाभि सीता रमैया को हरा दिया था । रमैया गांधी के उम्मीदवार थे । बोस की जीत पर गांधी ने कहा कि 'सीता रमैया की हार मेरी हार है । नतीजतन पूरी कांग्रेस कार्य समिति ने इस्तीफा दे दिया । समिति के सदस्यो ने बोस के साथ काम करने से मना कर दीया
मजबूर होकर नेताजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया । बाद में सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक नामक राजनीतिक दल बना लिया । पर नेताजी के विमान दुर्घटना में निधन की खबर जब 1945 में आई । तो गांधी ने कहा कि 'हिंदुस्तान का सबसे बहादुर व्यक्ति आज नहीं रहा ।
उन दिनों की बात ही कुछ और थी । तब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए वैसे नेता भी चुन लिए जा सकते थे जिन्हें पार्टी के सर्वोच्च नेताओ का सहयोग प्राप्त नही रहता था ।
पटेल और बोस के बीच पत्राचार
इस विवाद पर सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा कुछ अन्य लोगों के साथ सुभाष चंद्र बोस के पत्र-व्यवहार पढ़ने लायक हैं । सरदार पटेल ने 7 फरवरी, 1939 को सुभाष चंद्र बोस को लिखा कि 'आपके निर्वाचन के तुरंत बाद प्रेस ने यह छापा कि हम सबने कार्य समिति से त्यागपत्र दे दिया है । ए.पी. के प्रतिनिधि ने बारदोली में मुझसे जानना चाहा मैंने उनसे उस समय इस रिपोर्ट का प्रतिवाद करने को कहा
उसके बाद मुझे अबुल कलाम आजाद का तार मिला । जिसमें उन्होंने हम सबको त्यागपत्र देने का सुझाव दिया है । मैंने सोचा कि आपके निर्वाचन के तुरंत बाद हमारे त्यागपत्र देने से गलतफहमी पैदा होगी तथा आपको उलझन हो सकती है । अब राजेंद्र प्रसाद ने मुझे लिखा है। कि यदि इस समय हम इस्तीफा दें तो इससे मदद मिलेगी और इस सुझाव के समर्थन में जो तर्क उन्होंने दिए हैं । वे मुझे उचित लगते हैं । गांधी जी तब पार्टी के सर्वोच्च नेता थे।
जीनको गांधी जी आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता था । वो चुने जाने के बाद भी उस पद पर रह नहीं पाते थे ।
हम सब त्यागपत्र देने को तैयार हैं । जैसे ही आप हमें सूचित करते हैं । कि आपको इससे कोई परेशानी नहीं होगी । यदि आप चाहते हैं । कि हम थोड़ा इंतजार करें, तो हम आपकी बात मानेंगे । लेकिन उतना ही जितना आपको सुविधाजनक हो. कृपया इस विषय पर अपनी इच्छा तार द्वारा सूचित करें
बोस का जवाबी पत्र
अंततः सरदार पटेल ने त्यागपत्र दे ही दिया । उसे दुःख के साथ स्वीकार करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस ने 26 फरवरी, 1939 को लिखा, 'प्रिय सरदार जी, आपका संयुक्त त्याग पत्र 22 फरवरी को वर्धा में ठीक समय पर प्राप्त हो गया. मेरी अस्वस्थता के कारण उसका उत्तर पहले देना संभव न हो सका. सामान्यतया मुझसे आपसे आपके निर्णय पर पुनर्विचार के लिए कहना चाहिए था । और मिलने तक इस त्यागपत्र को रोकना चाहिए था । लेकिन मैं जानता हूं कि आपने खूब सोच विचार कर निर्णय लिया है । और आपके निर्णय लेने से पहले यदि मुझे जरा भी संभावना दीखती कि आप अपने त्यागपत्र पर पुनर्विचार करेंगे । तो मैं आपसे इस्तीफा वापस लेने का अनुनय-विनय करता । लेकिन वर्तमान परिस्थिति में औपचारिक प्रार्थना से काम नहीं बनेगा अतः मैं आपका त्यागपत्र बहुत दुःख के साथ स्वीकार करता हुँ ।
नेहरू को पटेल का पत्र
इससे पहले सरदार पटेल ने जवाहर लाल नेहरू को लिखा कि 'मुझे आपका पिछला पत्र बारदोली में मिला । जो आपने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने या स्वतंत्र बयान जारी करने के मेरे निवेदन के उत्तर में लिखा था । मैंने बापू के अनुरोध पर आपसे यह निवेदन किया था ।
मैंने उन्हें आपका जवाब दिखाया था । और उन्होंने मुझसे जो कुछ मैं महसूस करता हूं । पत्र में लिखने को कहा वह स्वयं उस पत्र से अप्रसन्न थे । लेकिन मैंने आपको परेशान करना ठीक नहीं समझा । संयुक्त बयान भी उनके अनुरोध पर जारी किया गया । वास्तव में मैंने उनसे कहा था । कि इससे मेरे विरुद्ध गाली-गलौज करने का और भी बहाना मिलेगा । परंतु उन्होंने जोर दिया तथा मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया मौलाना अंतिम क्षण में पीछे हट गए ।
मुझे आपके विचार ज्ञात नहीं है । लेकिन मुझे आशा है । कि जो कुछ हम करने जा रहे हैं । उसके लिए आप हमें दोष नहीं देंगे । मैं सोचता हूं कि मेरे भाग्य में गाली खाना लिखा है । बंगाल प्रेस बहुत गुस्से में है । और नारीमन और खरे घटना के लिए मुझे दोष दे रहे हैं । हालांकि मेरे सभी सहयोगी इसके लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं ।
याद रहे कि सुभाष चंद्र बोस जब कांग्रेस अध्यक्ष पद से अलग हुए तो उन्होंने देशव्यापी आंदोलन और विद्रोह आयोजित करने का निर्णय कर लिया तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे । पटेल ने इस बारे में 12 जुलाई 1939 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को लिखा कि 'मेरा सुझाव है । कि सुभाष बाबू के अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्णयों के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन और विद्रोह आयोजित करने के उनके निर्णय के स्पष्टीकरण के लिए एक नोटिस दिया जाए । क्योंकि बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कार्यपालिका के अध्यक्ष होने के नाते उन निर्णयों का आदर करने और कार्यान्वयन करने को वे बाध्य हैं ।
जहां तक बंगाल प्रांतीय कार्यपालिका का संबंध है । बेहतर होगा कि उसे भी ऐसा नोटिस दिया जाए । उन्होंने आपकी सलाह की उपेक्षा की है । अनुशासन भंग किया है । उन्हें अपना स्पष्टीकरण भेजने दीजिए और अगली बैठक में हम उन पर कार्रवाई करने के प्रश्न पर विचार करेंगे । इस समय हमारी ओर से कमजोरी दिखने से अनुशासनहीनता फैलेगी और हमारा संगठन कमजोर होगा । आपने बंबई सरकार की मद्य निषेध नीति पर सुभाष बाबू का बयान देखा होगा । उन्होंने हमारे शत्रुओं से भी बुरा व्यवहार किया है । इस तरह
इस तरह गांधी ने अलोक तांत्रिक तरीके से चुने हुए नेता जी को पद से हटवा दीये जीस के कारन ये भी प्रमाणित हो गया की कांग्रेस गांधी की जागीर है । और इस में पद के लीये देश भक्ति की नही गांधी भक्ति की जरुरत है । और यही से चमचागिरी प्रथा चालु होगयी । जीस के कारण हम पाकिस्तान जैसे बन गये और चीन हम से बहुत आगे नीकल गया
दोस्तो आप लोगो को मेरा ये ब्लॉग कैसा लगा कॉमेंट कर जरूर बताइयेगा । और अगर आप मेरे हर ब्लॉग को पाना चाहते है । तो अपना email डाल कर सब्सक्राइब व फोलो जरूर कर लीजियेगा ताकी मेरे ब्लॉग लिखते ही आप को मिल जाये । साथ ही यदि आप अपने जानने बालो तक भी ये ब्लॉग पहुँचाना चाहते है । तो उनका email डाल कर सब्सक्राइब करदे
धन्यवाद