Friday 7 February 2020

U N की स्थायी सीट अस्वीकार कर चीन को दिलाया

दोस्तों जब अपना देश आजाद हुआ था तो 1 डॉलर एक रुपये के बराबर ही था पर आज कितना है आप सब को बहुत अच्छे से पता है  
जब की चीन में एक डॉलर वहाँ के 20 युआन के बराबर ही है ऐसा क्यों हुआ इस का सबसे महत्वपूर्ण कारण है भारत जब आजाद हुआ तो उसे दो राहु - केतु मिले जिन्होंने देश को पिछड़ा रखने की भरसक कोशिश की वो थे  
नेहरू गाँधी इन दोने ने भारत को मिलने बाले हर तरक्की के मौके को टुकराना अपना पहला लक्ष्य रखा था मैं जानता हूँ ये बात आप लोगो को कुछ अजीब लगेगी पर सच मरता नही है  
दबाया जरूर जा सकता है जिसकी इन दोनों ने पूरी कोशिश की पर शच सामने आता ही है  
और आते भी जा रहा है इन लोग की भारत को पीछे रखने का एक और प्रमाण है यू एन के स्थायी सदस्यता के पद को स्वीकार ना करता जब की सभी देश इस की स्थायी सदस्यता के लिये तरसते रहते हैं  
आज भारत भी कोशिश कर रहा ही है पर अब तक वो कामयाब नही हुआ है
1953 में अमेरिका ने भारत के तब के प्रधानमंत्री नेहरू को यूएन के स्थायी सदस्यता देने की पेशकश की थी  
जिसमें भारत को सुरक्षा के स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल होने के लिए कहा गया था लेकिन बेबकूफ नेहरू ने बिना सोचे समझे इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया  
और इस से भी बड़ी बेबकूफी नेहरू ने ये की अपनी जगह चीन को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में शामिल करने की सलाह दे दी  
और चीन को स्थायी सदस्यता मिल गयी और वही चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर दोनो भारत के कई प्रस्ताव यूएन में ठुकरा देते हैं  
जिसका ताज उदाहरण पूरी दुनिया ने देखा की पूरी दुनिया के लिये खतरनाक खास कर भारत मे आतंवादी गतिविधियों को अंजाम देने बाले आतंकवादी मसूद अजहर को जब भी भारत अंतरराष्ट्रीय आतंवादी घोषित करबाने का प्रयास भारत करता था  
उस प्रस्ताव को चीन पारित नही होने देता था और भारत के उस प्रस्ताव को चीन के दबाब के कारण यूएन द्वारा ठुकरा दिया.जाता था  
अब जरा सोचिये इतने महत्वपूर्ण संस्था की स्थायी सदस्यता तो कोई देश का कट्टर विरोधी ही छोर सकता था अब आप खुद निर्णय लीजिये नेहरू भारत के लिये वरदान था या अभिशाप मर्जी आपकी 
दोस्तो आप लोगों के समर्थन के कारण मै और भी ब्लॉग लिखने लगा हूँ



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