दोस्तों जैसा की आप लोग जानते है । देश के पिछड़े रखने के लीये गांधी ने हर संभव प्रयास किये उन्हीं प्रयासों में एक था । पटेल के बजाय नेहरू को चुनना
देशभर में चुनावी फिजा थी । बहस-मुबाहिसें जारी थी । बहस के प्रमुख विषय इतिहास के पन्ने हुआ करते थे । उत्तर प्रदेश की एक चुनावी सभा में जिला और ब्लॉक स्तर के नेता दलील दे रहे थे । पहला प्रधानमंत्री नेहरू नहीं पटेल को होना चाहिए ।तब हुए चुनाव में नेहरू को नहीं पटेल को सारे वोट मिले थे । लेकिन नेहरू ने पटेल को पीएम बनने से रोक दिया ।
गांधी के सहयोग से नेहरू रसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर इंसान थे । ऐसा आदमी कभी भी अच्छा शासक नहीं हो सकता ।पटेल मोदी की तरह ही कट्टर थे । उन्होंने ही सभी रियासतों को भारत का हिस्सा बनाया था ।
हाल में वायरल एक वीडियो में राजस्थान में कुछ वकीलों से एक पत्रकार बात कर रहे दीखते है जीस में वकील कहते हैं । पहला पीएम नेहरू नहीं पटेल को बनना चाहिए था । पत्रकार कहते हैं । देश में पहली बार चुनाव कब हुए । जवाब आता है । 1951-1952 में पटेल की मौत कब हुई । जवाब आया 1950 में फिर नेहरू ने पटेल को पीएम बनने से रोक दिया । इसके बाद वकील चुप हो जाते हैं । उनके पास कहने को कुछ नहीं होता है । लेकिन इस ऐतिहासिक कहानी में यही दो पन्ने नहीं हैं ।
जब चुनाव ही नहीं हुए तो नेहरू कैसे बन गए पहले प्रधानमंत्री
भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 बीच हुए थे । इसके बाद भारत की पहली संवैधानिक सरकार चुनी गई थी । तब नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने थे । लेकिन पहले नहीं, दूसरे तब पटेल का निधन हो चुका था ।लेकिन देश तो अगस्त 1947 में ही आजाद हो गया था । फिर 15 अगस्त 1947 से पहले चुनाव तक भारत का शासन किसके हाथ में था । नेहरू कैसे देश के पहले पीएम बन गए । उन्हें किसने पीएम बना दिया ।
असल में 14 अगस्त 1947 की आधी रात को संविधान सभा की ओर से चुने गए भारत के पहले गर्वनर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई थी । जैसा की गांधी चाहते थे । तब पटेल सक्रिय राजनीति में थे । वह प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हो सकते थे । लेकिन 1946 की गर्मियों में जो हुआ था । उसके बाद किसी भी हाल में पटेल देश के पहले पीएम नहीं बन पाते । क्यों की गांधी ये नही चाहते थे ।
1946 में भारत में दो चीजें एक साथ चल रही थीं । भारत छोड़ो आंदोलन देश में चरम पर था । और द्वितीय विश्वयुद्ध आखिरी चरण में था । यह तय माना जाने लगा था । कि द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होते ही ब्रिशटिश सरकार भारत को आजाद कर देगी । तब भारतीय नेता आजाद भारत के शासन की तैयारी भी शुरू कर चुके थे ।
क्या हुआ था 1946 में,
जिसके चलते पटेल के बजाय नेहरू को मिली सत्ता ।
उन्हीं दिनों 29 मार्च 1946 को ब्रिटेन लेबर पार्टी के नेता और वहां के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारतीय नेताओं से बातचीत के लिए कैबिनेट मिशन प्लान भेजा । इस तीन सांसदों सर स्टेफर्ड क्रिप्स, एबी एलेंजडर, पैथि क लारेंस का दल भारत में संविधान की रूपरेखा के लिए संविधान सभा और अंतरिम सरकार बनाने का प्रस्ताव लेकर आया ।
एक तरफ मुस्लिम लीग पाकिस्तान बनाने का राग अलाप रहा थी । तो दूसरी तरफ आजाद भारत की सरकार के स्वरूप निर्माण में गांधी ने निभाई थी ।महत्वपूर्ण भूमिकाः अंतरिम सरकार के प्रस्ताव को ध्यान में रखकर महात्मा गांधी ने तत्काल नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव कराने को कहा । ऐसा माना जा रहा था । कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री पद का दावेदार होगा । तब कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे ।
वह 1940 से ही कांग्रेस अध्यक्ष थे । अपनी किताब में उन्होंने 1946 में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने की मंशा को लेकर लिखा था । वह 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते थे । लेकिन गांधी ने ही उन्हें ऐसा ना करने को कहा क्योंकि वो नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना चाहते ।
तब कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए पूरी AICC के सदस्यों का मतदान कराया जाता था । लेकिन गांधी इसे जल्द से जल्द पूरा करा लेना चाहते थे । इसलिए तय हुआ कि केवल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों के मतदान से ही अगला कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाएगा । उस वक्त के दस्तावेजों से मिली जानकारी के अनुसार 15 PCC के द्वारा भेजे गए नामों में 12 ने वल्लभ भाई पटेल के नाम की संस्तुति की थी । दो ने जेबी कृपलानी के नाम की संस्तुति की. और एक ने अपना मत जाहिर नहीं किया । इसमें एक भी पीसीसी ने जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की संस्तुति नहीं की थी ।
अंतरिम सरकार की रूपरेखा क्या होगी? कौन नेतृत्व करेगा ये सब गांधी के ही हाथो में था । गांधी ने पहले कृपलानी से अपना नाम वापस लेकर जवाहर लाल नेहरू के पक्ष में जाने को कहा । बाद में उनके कहने पर ही वल्लभ भाई पटेल ने भी नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष पद दिए जाने का समर्थन कर दिया ।
कांग्रेस अध्यक्ष का देश का पहला पीएम बनना तय था ।
1946 में कांग्रेस के चुने जाने वाले नए अध्यदक्ष का ही भारत का पहला पीएम बनना तय था । यदि पटेल कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए होते तब शायद तस्वीर कुछ और होती ।
हालांकि तब पटेल के पक्ष में अपना वोट देने वाले एक PCC अध्यक्ष द्वारका प्रसाद मिश्रा कहते हैं । हमने पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए मत दिया था। ना कि देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए । लेकिन वायसराय लॉर्ड वेवल ने 1 अगस्त 1946 को कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू को अंतरिम सरकार बनाने का न्योता दिया ।
2 सितंबर 1946 को नेहरू ने 11 अन्य सदस्यों के साथ अपने पद की शपथ ली । तब जो पद नेहरू को मिला उसे प्रधानमंत्री तो नहीं कहा गया । लेकिन उसे ही राष्ट्राध्यक्ष कहा गया ।
4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता विधेयक पेश किया गया । 18 जुलाई को इसे स्वीकृति मिल गई फीर माथापच्ची शुरू हो गई ।
इसी तरह एक बार फीर गांधी ने देश हीत के उपर अपने स्वारथ को रखा । आज देश चीन से इतना पीछे इसी लीये है । क्योंकि पहले प्रधानमंत्री गांधी ने नेहरू को बना दिया ।
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