गांधी को
महात्मा की
उपाधि देने
वाले स्वामी
श्रद्धानंद सरस्वती
के हत्यारे
को खुद गांधी
के बयानो
ने ही
बचाया था।
ये गांधी
की गलती
थी 1926 में
जिस अब्दुल
राशिद नाम
के व्यक्ति
ने उनकी
हत्या की
थी गांधी
ने उसका
बचाव ‘मेरा
भाई’ कहकर
किया था।’जो
बहुत गलत
काम था
।
बहुत कम
लोग जानते
हैं कि
हरिद्वार के
प्रसिद्ध गुरुकुल
कांगड़ी विश्वविद्यालय
के संस्थापक
स्वामी श्रद्धानंद
सरस्वती जालंधर
के रहने
वाले थे।
अड्डा होशियारपुर
में उनका
घर था।
उनका जन्म 1856 में
तलवण में
हुआ था।
बुधवार को
गुरुकुल के
प्रिंसिपल डॉ.
उदयन आर्य
ने एक
प्रेस कांफ्रेंस
में बताया
कि ‘दलितों
को धार्मिक
स्थलों में
प्रवेश नहीं
दिए जाने
से वह
बहुत आहत
थे। मनुष्य
का मनुष्य
से ऐसा
बरताव उन्हें
कचोटता था।
स्वामीजी ने
दलितों के
साथ हो
रहे छूआछूत
का मुखर
विरोध किया
और हवन
यज्ञ में
साथ बिठाकर
सदियों से
चली रही
असमानता को
खत्म करने
का काम
किया। उस
समय कट्टरवादियों
ने उनका
विरोध भी
किया लेकिन
वह सामाजिक
असमानता के
खिलाफ लड़ाई
लड़ते रहे।
स्वामीजी का
पारिवारिक नाम
लाला मुंशी
राम था।
वह शहर
के बड़े
वकीलों में
शुमार थे।
आर्यसमाज के
संस्थापक स्वामी
दयानंद सरस्वती
से उन्होंने
दीक्षा ली
थी। वह
आज भी
ऐसे पहले
गैर इस्लामिक
नेता हैं
जिन्होंने जामा
मस्जिद से
दो बार
लोगों को
संबोधित किया
था। वह
सर्वधर्म समाज
का सपना
देखते थे।
गांधी ने
कहा था
राशिद मेरा
भाई है
: अब्दुल
राशिद को
रंगे हाथ
पकड़ा गया
था ।लेकिन
फिर भी
दो साल
बाद वह
बरी हो
गया। इसमें
महात्मा गांधी
का बड़ा
योगदान था। गांधी ने
स्वामीजी की
हत्या के
बाद एक
मंच से
कहा था
। कि ‘राशिद
मेरा भाई
है ।
और मैं
बार -
बार यह
कहूंगा। हत्या
के लिए
मैं उसे
दोषी नहीं
ठहराता। दोषी
वह लोग
हैं ।
जो एक
दूसरे के
खिलाफ नफरत
फैलाते हैं।
उसकी कोई
गलती नहीं
है। और
नाही उसे
दोषी ठहराकर
किसी का
भला होगा।’ अगर
किसी की
वकालत खुद
गांधी कर
रहे हों
तो कौन
सा कानून
आरोपी को
सजा देता। गांधीजी के
प्रयासों से
राशिद को
छोड़ दिया
गया। यह
जानते हुए
भी कि
स्वामी श्रद्धानंद
सरस्वती उस
समय देश
के सबसे
बड़े हिंदू
धर्मगुरू थे।
स्वामीजीगुरुकुल
खोलना चाहते
थे। गांव
- गांव जाकर
चंदा मांगा
लेकिन किसी
ने सहयोग
नहीं दिया।
जालंधर में
उनके पुरखों
की खूब
जमीन जायजाद
जो थी।
जिसकी मलकियत
स्वामीजी के
नाम थी।
अपने बेटों
से विमर्श
के बाद
सारी जमीन
आर्य समाज
को दान
दे दी।
फिर कांगड़ी
के सरपंच
ने गांव
की सारी
जमीन स्वामी
जी को
दान कर
दी। आज
उस जगह
विश्व का
सबसे बड़ा
गुरुकुल स्थापित
है। 23 दिसंबर 1926 को
अब्दुल राशिद
नाम के
एक कट्टरवादी
ने उनसे
समाज सेवा
पर चर्चा
के लिए
समय लिया।
स्वामीजी उस
वक्त निमोनिया
से पीड़ित
थे। राशिद
ने लोई
में छिपा
रखी पिस्तोल
से उनपर
गोलियां दाग
दीं और
शहीद कर
दिया। राशिद
को मौके
पर ही
पकड़ लिया
गया था।
वकालत के
साथ आर्य
समाज के
जालंधर जिला
अध्यक्ष के
पद से
उनका सार्बजनिक
जीवन प्रारम्भ
हुया | महर्षि
दयानंद के
महाप्रयाण के
बाद उन्होने
स्वयं को
स्व-देश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी
कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी
प्रचार, वेदोत्थान, पाखंड
खडंन, अंधविश्वाहस
उन्मूलन और
धर्मोत्थान के
कार्यों को
आगे बढ़ाने
में पूर्णतः
समर्पित कर
दिया। गुरुकुल
कांगड़ी की
स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म
प्रचार, पत्रिका
द्वारा धर्म
प्रचार, सत्य
धर्म के
आधार पर
साहित्य रचना, वेद
पढ़ने व
पढ़ाने की
व्यवस्था करना, धर्म
के पथ
पर अडिग
रहना, आर्य
भाषा के
प्रचार तथा
उसे जीवीकोपार्जन
की भाषा
बनाने का
सफल प्रयास, आर्य
जाति के
उन्नति के
लिए हर
प्रकार से
प्रयास करना
आदि ऐसे
कार्य हैं
जिनके फलस्वरुप
स्वामी श्रद्धानंद
अनंत काल
के लिए
अमर हो
गए।
उनकी हत्या
के दो
दिन बाद
अर्थात 25 दिसम्बर,
1926 को गुवाहाटी
में आयोजित
कांग्रेस के
अधिवेशन में
जारी शोक
प्रस्ताव में
जो कुछ
कहा वह
स्तब्ध करने
वाला था। गांधी
के शोक
प्रस्ताव के
उद्बोधन का
एक उद्धरण
इस प्रकार
है “मैंने
अब्दुल रशीद
को भाई
कहा और
मैं इसे
दोहराता हूँ।
मैं यहाँ
तक कि
उसे स्वामी
जी की
हत्या का
दोषी भी
नहीं मानता
हूँ। वास्तव
में दोषी
वे लोग
हैं ।
जिन्होंने एक
दूसरे के
विरुद्ध घृणा
की भावना
को पैदा
किया ।
स्वार्थ पूर्ण
हरकतों ने
हिन्दू व
मुस्लिम के
बीच दरार
को और
बड़ा कर
दिया और
आज तक
दोनो दील
से एक
नही होपा
रहे है
। जीस
के चलते
हम पाकिस्तान
के बराबर
है।व चीन
से पीछे
दोस्तो आप
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