दोस्तो गाँधी व नेहरू की घटिया राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण आज देश इतना पीछे है । इन लोगों की घटिया हरकतों की जितनी निंदा की जाये वो कम है । आइये इन लोगो की एक और घटिया काम पर चर्चा करें ।
दोस्तो आज आप इंदिरा ,राजीव,राहुल आदि के नाम के पीछे जो गाँधी देखते है । क्या आप को उसकी सच्चाई मालूम है । अगर नही तो आईये जाने
कमला नेहरू जो इंदिरा की माँ थी । वो शुरू से ही इंदिरा फिरोज के विवाह के खिलाफ थी पर क्यो ये आप को किसीने नही बताया होगा ।
आनन्द भवन उर्फ इशरत मंजिल के मालिक थे मुबारक अली मोतीलाल इन्ही के यहाँ कर्मचारि थे ।
राजीव गाँधी के नाना तो नेहरू थे । पर बहुत कम लोग जानते है । राजीव गाँधी के दादा थे एक मुस्लिम व्यापारी नबाब खान जो आनन्द भवन में सप्लाई का काम करते थे । जो जूनागढ़ गुजरात के निवासी थे । इसने एक पारसी महिला को मुस्लिम बनाकर उस से शादी की थी । इसी के पुत्र थे फिरोज खान ।
विवाह से पूर्व फिरोज गाँधी नही खान थे । और कमला नेहरू के विरोध का कारण भी यही था । सब को बताया जाता है । की फिरोज गाँधी पारसी है । पर ये झूठ है ।
क्यो की नेहरू जानते थे की वो पहले ही मुसलमान से हिन्दु बनने का नाटक करते आ रहे है । ताकि वो हिंन्दुस्तान में निर्विरोध राज कर सके ऐसे में अगर उनकी बेटी के पुनः मुसलमान बनने व एक मुसलमान से शादी करने की खबर सार्वजनिक होगयी तो उन्हें सत्ता कभी नसीब नही होगी इसी लिये वो भी इस शादी के विरोध में थे ।
नेहरू राजनीति में व्यस्त थे तो कमला अस्पताल में भर्ती थी ।
जिसके कारण इंदिरा अकेलेपन व अवसाद की शिकार होगयी थी । शान्ति निकेतन में पढ़ते वक्त ही टैगोर ने उन्हें उनके अनुचित व्यवहार के कारण बाहर निकाल दिया था ।
इसी बात का गलत फायदा उठाया फिरोज खान ने और इंदिरा का धर्म परिवर्तन करवाकर लंदन की एक मस्जिद में उसने इंदिरा से निकाह कर लिया । तब इंदिरा का मुस्लिम नाम रखा गया मैमुना बेगम ।
यहाँ जब ये बात नेहरू को पता चली तो वो बहुत क्रोधित हुए । पर अब कर भी क्या सकते थे । शादी तो हो चुकी थी ।
जब ये बात गाँधी को पता चली तो उन्होने नेहरू को राजनीतिक छवि के खातिर मना लिया । फिर गाँधी ने फिरोज को मना लिया । फिर एक शपथ पत्र के जरिये बिना धर्म बदले ही सिर्फ नाम बदल दिया गया और तब से फिरोज खान फिरोज गाँधी बन गये ।
फिर इन लोगो को भारत बुलाकर वैदिक रीति से शादी करवा दी गयी और जनता की नजरों में धूल झोंक दी गयी । और खानदान का ऊँची नाक का भरम भी बना रह गया ।
इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम. ओ. मथाई ने अपनी किताब प्रेमीनिसेन्सेस ऑफ नेहरू के पेज 94 के लाईन 2 (ये किताब भारत मे अब भी प्रतिबंधित है । में लिखा है कि पता नही क्यो नहर ने 1942 में इस अन्तर्जातीय व अधार्मिक विवाह को वैदिक रीति से कराने की आज्ञा दी जब कि उस समय ये अवैधानिक था । कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । पर ताज्जुब तो इस बात का है ।
कि खुद को सत्य के मसीहा कहाने बाले गाँधी ने कभी भी ना ही इस सच्चाई को बोला और ना ही अपनी किताब में ही कही लिखा । जबकी ये बहुत बड़ी घटना थी ।
इंदिरा की इसी सच्चाई के कारण उन्हें कई हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करने से रोक गया क्योकी वो मात्र नाम की फारसी थी उन्होंने हिन्दू धर्म या पारसी धर्म अपनाया ही नही था मुसलमान बनने के बाद पर वाह रे हिंदुस्तान के लोग जो बार - बार इन्ही लोगो के हाथों में सत्ता देते गये और देश को पाकिस्तान के बराबरी में खड़ा करते गये
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