Wednesday 8 January 2020

गाँधी ने बनाया खान को गाँधी


दोस्तो गाँधी नेहरू की घटिया राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण आज देश इतना पीछे है इन लोगों की घटिया हरकतों की जितनी निंदा की जाये वो कम है आइये इन लोगो की एक और घटिया काम पर चर्चा करें
दोस्तो आज आप इंदिरा ,राजीव,राहुल आदि के नाम के पीछे जो गाँधी देखते है क्या आप को उसकी सच्चाई मालूम है अगर नही तो आईये जाने
कमला नेहरू जो इंदिरा की माँ थी वो शुरू से ही इंदिरा फिरोज के विवाह के खिलाफ थी पर क्यो ये आप को किसीने नही बताया होगा
आनन्द भवन उर्फ इशरत मंजिल के मालिक थे मुबारक अली मोतीलाल इन्ही के यहाँ कर्मचारि थे
राजीव गाँधी के नाना तो नेहरू थे पर बहुत कम लोग जानते है राजीव गाँधी के दादा थे एक मुस्लिम व्यापारी नबाब खान जो आनन्द भवन में सप्लाई का काम करते थे जो जूनागढ़ गुजरात के निवासी थे इसने एक पारसी महिला को मुस्लिम बनाकर उस से शादी की थी इसी के पुत्र थे फिरोज खान
विवाह से पूर्व फिरोज गाँधी नही खान थे और कमला नेहरू के विरोध का कारण भी यही था सब को बताया जाता है की फिरोज गाँधी पारसी है पर ये झूठ है  
क्यो की नेहरू जानते थे की वो पहले ही मुसलमान से हिन्दु बनने का नाटक करते रहे है ताकि वो हिंन्दुस्तान में निर्विरोध राज कर सके ऐसे में अगर उनकी बेटी के पुनः मुसलमान बनने एक मुसलमान से शादी करने की खबर सार्वजनिक होगयी तो उन्हें सत्ता कभी नसीब नही होगी इसी लिये वो भी इस शादी के विरोध में थे
नेहरू राजनीति में व्यस्त थे तो कमला अस्पताल  में भर्ती थी  
जिसके कारण इंदिरा अकेलेपन अवसाद की शिकार होगयी थी शान्ति निकेतन में पढ़ते वक्त ही टैगोर ने उन्हें उनके अनुचित व्यवहार के कारण बाहर निकाल दिया था
इसी बात का गलत फायदा उठाया फिरोज खान ने और इंदिरा का धर्म परिवर्तन करवाकर लंदन की एक मस्जिद में उसने इंदिरा से निकाह कर लिया तब इंदिरा का मुस्लिम नाम रखा गया मैमुना बेगम
यहाँ जब ये बात नेहरू को पता चली तो वो बहुत क्रोधित हुए पर अब कर भी क्या सकते थे शादी तो हो चुकी थी
जब ये बात गाँधी को पता चली तो उन्होने नेहरू को राजनीतिक छवि के खातिर मना लिया फिर गाँधी ने फिरोज को मना लिया फिर एक शपथ पत्र के जरिये बिना धर्म बदले ही सिर्फ नाम बदल दिया गया और तब से फिरोज खान फिरोज गाँधी बन गये
फिर इन लोगो को भारत बुलाकर वैदिक रीति से शादी करवा दी गयी और जनता की नजरों में धूल झोंक दी गयी और खानदान का ऊँची नाक का भरम भी बना रह गया
इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम. . मथाई ने अपनी किताब प्रेमीनिसेन्सेस ऑफ नेहरू के पेज 94 के लाईन 2 (ये किताब भारत मे अब भी प्रतिबंधित है में लिखा है कि पता नही क्यो नहर ने 1942 में इस अन्तर्जातीय अधार्मिक विवाह को वैदिक रीति से कराने की आज्ञा दी जब कि उस समय ये अवैधानिक था कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था पर ताज्जुब तो इस बात का है  
कि खुद को सत्य के मसीहा कहाने बाले गाँधी ने कभी भी ना ही इस सच्चाई को बोला और ना ही अपनी किताब में ही कही लिखा जबकी ये बहुत बड़ी घटना थी  
इंदिरा की इसी सच्चाई के कारण उन्हें कई हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करने से रोक गया क्योकी वो मात्र नाम की फारसी थी उन्होंने हिन्दू धर्म या पारसी धर्म अपनाया ही नही था मुसलमान बनने के बाद पर वाह रे हिंदुस्तान के लोग जो बार - बार इन्ही लोगो के हाथों में सत्ता देते गये और देश को पाकिस्तान के बराबरी में खड़ा करते गये
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