राजीव गाँधी की सरकार
प्रभाकरन व राजीव गाँधी के बीच मंत्रणा
राजीव गाँधी के समय श्रीलंका में तमिलों के साथ बहुत जुल्म हो रहा था । उस समय राजीव गाँधी व प्रभाकरन के बीच एक गुप्त बैठक हुई थी । जुलाई 1987, पता 10 जनपथ देश के तत्तकालीन प्रधानमंत्री का निवास स्थान । एक बैठक चल रही थी जिसमें मौजूद थे ।
राजीव गांधी, उनके सामने बैठा था लिट्टे का कमांडर प्रभाकरण । प्रभाकरन उस वक्त दिल्ली के अशोका होटल में था । खुफिया निगरानी में उसे राजीव के पास लाया जिसमें प्रभाकरन ने कहा था की श्रीलंका सरकार पर विश्वास नहीं किया जा सकता ।
राजीव गांधी ने कहा कि वह तमिलों के हित के लिए काम कर रहे हैं । अंतत : प्रभाकरन भारत-श्रीलंका समझौते को एक मौक़ा देने के लिए तैयार हो गए ।
राजीव गांधी इससे बहुत ख़ुश हुए । उन्होंने तुरंत प्रभाकरन के लिए खाना मंगवाया. जब वह उनके घर से निकलने लगे तो राजीव ने राहुल गांधी को बुलाया और उनसे अपनी बुलेटप्रूफ़ जैकेट लाने के लिए कहा। उन्होंने वह जैकेट प्रभाकरन को देते हुए मुस्कराते हुए कहा, "आप अपना ख़्य़ाल रखिएगा । ये दोनों के बीच आमने सामने की आखिरी मुलाकात थी ।
बोफोर्स दलाली मामला
दोस्तों 24 मार्च 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की एक हथियार निर्माण कंपनी ए.बी. बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपए की डील हुई थी । जिस के तहत भारतीय थल सेना को बोफोर्स कम्पनी द्वारा 155 एमएम की 400 हवितत्सर तोप सप्लाई की जानी थीं ।
जिस डील के साल भर बाद ही स्वीडिश रेडियो ने ये दावा किया कि कंपनी के सौदे के लिए भारत के काँग्रेस के राजनीतिज्ञों को करीब-करीब 60 करोड़ रुपए की घूस दी है । ताकी वो लोग तोपों का आर्डर बोफोर्स को दिलबाये बस तभी से राजीव गांधी सरकार की इस मामले में भूमिका एक बिचौलिए के तौर पर देखी जाने लगी ।
मामले की जांच भी हुई । जैसा की हर जाँच में होता है । कुछ भी सच्चाई सामने नही आई इस दौर में चुनाव भी था । 1989 में चुनाव हुए तो बोफोर्स की वजह से कांग्रेस की सरकार की करारी हार हुई । इस मामले में इटली के ओत्तावियो क्वात्रोकी का नाम सामने आया था, चुकी राजीव गाँधी का ससुराल इटली में ही है । और मुख्य आरोपी का इटली का होना इस बात को और गम्भीर कर बना दिया था ।
जिस पर दलाली के जरिए घूस खाने के आरोप लगे । क्वात्रोकी तो उसके बाद कांग्रेस के सहयोग से विदेश भगा दिया गया बिल्कुल जैसे एंडरसन को भगा दिया गया था । लेकिन देश में रह रही कांग्रेस के माथे पर एक और कलंक लग गया । चुकी जाँच सत्ता पक्ष की इच्छाओ के अनुरूप ही CBI करती है ।
तो ऐसे में जैसा की उम्मीद था । बिल्कुल वैसा ही हुआ जांच में भी कोई दोषी नहीं पाया गया था । पुनः नवंबर 2018 में सी.बी.आई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और इस केस की दोबारा जांच की मांग की तो सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सी.बी.आई 13 साल की देरी से क्यों आई ? क्योकी ये तो आप लोग जानते ही है । की भारतीय सुप्रीम कोर्ट भारत के हितों की बात करना व सुनना गलत समझता है ।
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