इंदिरा की हत्या पर हुए कत्लेआम का समर्थन
दोस्तों जब इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी । तो इंदिरा गांधी की मौत के बाद पूरे देश में लोग सिखों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। क्योंकी इंदिरा गांधी की हत्या करने बाले सिख थे । पूरे देश में सिखों का कत्लेआम,लूट,बलात्कार होने लगा था ।
पूरे देश मे उस समय काँग्रेस का एक क्षत्र राज था । जिसके कारण पूरे देश में ही प्रशासन मूकदर्शक बनी हुई थी । क्योकी इस लुटपाट व कत्लेआम को कांग्रेसीयो का समर्थन प्राप्त था । कई कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री खुद इस कत्लेआम की अगुवाई तक कर रहे थे ।
ऐसे में प्रशासन चाहकर भी कुछ नही कर पा रही थी । और जब सरकार ही उपद्रवियों के साथ थी तो सेनाओं की मदद लेता कौन । और उस समय सबसे ज्यादा कहर दिल्ली में रहने बाले सीखो पर बरसा था । पूरी दिल्ली में सिखों के जान माल की उसी तरह जबरदस्त हानी हुई थी ।
करीब - करीब तीन दिनो तक दिल्ली की सड़कों औऱ गलियों में सिखों का कत्लेआम,लूटपाट,बलात्कार होता रहा। पूरी दिल्ली में सिख जान बचाने के लिए अपने ही देश की राजधानी में जगह ढूंढ रहे थे। बेचारे असहाय सीखो की सुनने व मदद करने बाला उस समय कोई नही था ।
और जो भी ऐसा करने की कोशिश भी करते थे उन्हें इन कांग्रेसी उपद्रवियों के कोप भाजन बनना पड़ता था । बहुत ही ह्रदय विदारक स्थिति थी वो। दोस्तों 19 नवंबर 1984, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनका पहला जन्मदिन भी मना था ।
दोस्तों दिल्ली व पूरे देश में सिख विरोधी दंगों को शुरू हुए पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे । और उस त्रासदी,दुःख दायीं भरे माहौल में ही राजीव गांधी ने तमाम रस्मो-रिवाज के साथ इंदिरा गांधी का जन्मदिन मनाने की घोषणा कर दी। ये वो दौर था जब इंडिया गेट के नजदीक बोट क्लब सियासत का केंद्र बिंदु हुआ करता था ।
और इस बोट क्लब को आज के रामलीला मैदान या जंतर-मंतर की जैसी ही राजनीतिक हैसियत प्राप्त थी। दिल्ली समेत पूरे देश के विभिन्न हिस्सों में हुए सिख विरोधी दंगों पर राजीव गांधी ने कुछ खास ना ही बोला था और ना ही कुछ खास किया ही था ।
इस विषय के सन्दर्भ में श्री मनोज मित्ता व श्री एचएस फुल्का जी ने अपनी किताब 'व्हेन अ ट्री शुक डेल्ही' में लिखते हैं । कि राजीव गांधी ने बोट क्लब की रैली में कहा, 'गुस्से में उठाया गया कोई भी कदम देश के लिए घातक होता है। कई बार गुस्से में हम जाने-अनजाने ऐसे ही लोगों की मदद करते हैं ।
जो देश को बांटना चाहते हैं'। ये तो बिल्कुल सही कहा था और इस बात से लगा की वो सिख विरोधी नरसंहार के बारे में कुछ कठोर निन्दनीय बात कहेंगे लेकिन इसके बाद जो उन्होंने कहा वो चौंकाने वाला ही नही बेहद शर्मनाक भी था जिस की किसी को भी उम्मीद बिल्कुल नही थी ।
ने कहा कि हमें मालूम है। कि भारत की जनता को कितना क्रोध है । कितना ग़ुस्सा है और कुछ दिन के लिए लोगों को ऐसा लगा कि पूरा भारत हिल रहा है । जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है । तो धरती थोड़ी हिलती है। राजवी गांधी के बयान से यह संदेश गया- 'मानो इन हत्याओं को उनके द्वारा सही ठहराने की कोशिश की जा रही थी।
राजीव गांधी के इस वक्तव्य ने उस समय काफ़ी सनसनी मचाई थी । और उनकी उस बात को जायज़ ठहराने में कांग्रेस पार्टी व कांग्रेसियों को अभी भी काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
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